कला चमकाना
शामली ज़िला कला का भंडार है, बस पहचानना बाकी है। हम इन कलाओं को उभरने का मौका देना चाहते हैं और आगे का सपना है की कई लोगों के लिए यह व्यवसाय भी बन जाए। उस मुकाम से हम इस वक्त दूर हैं लेकिन कला की पहचान करने का पहला कदम उठा चुके हैं।
मुख्य रूप से हम अभी औरतों की एक कला को प्रोत्साहन देने में लगे हुए हैं – वो है डलड़ी बनाने की कला, जो घर-घर में मौजूद है। नाला गाँव की औरतों ने बड़े पैमाने मे दलड़ियाँ बनाई लेकिन कोरोना के चलते इसको व्यवसाय मे बदलने का जो काम था, वो रुक गया। अब हमने देखा की कई गाँव मे यह कला मौजूद है – उस्मानपुर, हुरमंजपुर और भी गाँव हैं। इस कला को दिल्ली जैसे बड़े शहर के बाज़ार तक ले जाने का सपना पूरा करके रहेंगे।
साथ ही हम शामली की और भी कलाओं को ढूंढ कर प्रोत्साहित करने की कोशिश करेंगे आने वाले दिनों में। हमने इनकी पहचान करना शुरू किया है। क्रोशै का काम, भजन-क़व्वाली गाने का काम, नाटक मंडली का काम, डांस मंडली का काम, सिलाई का काम, कुम्हारों का काम, दरी बनाने का काम – अभी बहुत काम बाकी है।