मिलाप
इस दुनिया को बनाने के लिए हमारी कई कोशिशें जारी हैं।
पहली, अपने सरफ़रोशी संगठन की मीटिंग मे सभी धर्म और जाति के लोगों को शामिल करना।
दूसरी, सारे मुख्य त्यौहारों को साथ मे मनाना।
एक साल पहले, ईद के त्यौहार पर सरफ़रोशी फाउंडेशन से जुड़े तमाम लीडर यानी सरफ़रोशी प्रभारियों ने ईद मिलन की। फिर दिवाली पर हिंदू और मुसलमानों ने मिल कर दिवाली मिलन भी की।
लेकिन ईद और दिवाली के बीच के छे महीनों में क्यूँ दोनों धर्म के लोग आपस मे मिल ना सके? इस पर हम सब ने मिल कर चर्चा की और इस का समाधान क्या हो सकता है, इस पर भी बात की। त्यौहारों पर एक दूसरे से मिलना तो आसान है। रोज़ की ज़िंदगी मे इस मेल-जोल को ज़िन्दा रखना थोड़ा और मुश्किल। लेकिन अगर हमनें ऐसा नहीं किया, तो कैसे सुधरेगी हमारी दुनिया? और क्या अलग अलग रह कर, विभिन्नता को खत्म करके क्या हमारी दुनिया सुधर सकती है? क्या इस विभाजन से, एक दूसरे से कटे रहने की वजह से हम अपने हकों से वंचित रह जाते हैं? रोटी, कपड़ा, मकान, कमाई की तरफ बढ़ने से रह जाते हैं?
यह सब आपको देखने को मिलेगा हमारे इस फिल्म में – दिवाली पर दो बात ज़रूरी। देख कर बताना कॉमेंटस मे की यह फिल्म कैसी लगी। पसंद आए तो शेयर ज़रूर कीजिएगा।
पिछले साल नाला गाँव की कुछ हिन्दू महिलाओं ने मुस्लिम महिलाओं को होली पर बुलाई और त्यौहार को और खास बनाया।
इस साल, सरफ़रोशी संस्था के हिन्दू प्रभारियों ने मुसलमानों को बुला कर रोज़ा-इफ्तारी या ईद मिलन की और मुसलमान प्रभारियों ने हिंदुओं के साथ ईद मनाई।
इस मिलाप से ईद इतनी अद्भुत रही की हम सब ने मिल कर इस पर एक फिल्म बनाई जिसे आप यहाँ देख सकते हैं – ईद हो तो ऐसी।